Friday, February 22, 2008

नारी

आँचल मे है दूध
आँखों मे है पानी
क्या येही है मेरी कहानी 

कोख मे ही मार डाला
माँ बाप पर बनी बोझ
क्या येही है मेरी कहानी

जिस आगन मे खेला बचपन
उसी आगन को ही छोड़ा
क्या येही है मेरी कहानी

बाप का घर बना पराया
ससुराल भी है बेगाना
क्या येही है मेरी कहानी

बीच रस्ते मे हु  खड़ी
न कोई मंजिल मेरी
क्या येही है मेरी कहानी

जिस नर को जनम दिया
उसीने ही छिना आँचल मेरा
क्या येही है मेरी कहानी

समान हक़  की बात करके
हक़  मेरा है छीना
क्या येही है मरी कहानी

अब तक साहा  है मने
अब न सहूंगी किसीकी
अब बदलेगी मेरी कहानी

लडूगी अपने हक़  के लिए
बनके  झाँसी की रानी
मै बद्लुगी मेरी  कहानी

रूप दुर्गा का है मेरा
 खत्म  करुगी हर जुल्म को
तब  बदलेगी  अब मेरी कहानी