Thursday, February 25, 2010

मेरा धफ्तर

घर से भी ज्यादा वक़्त गुजरा है दफ्तर में
भूल जाते है घर को आकर हम  दफ्तर में

भिन भिन  प्रान्त के है साथी
हर भाषा यहाँ बोली जाती
जैसे भारत की छबी है दफ्तर में
भूल जाते है घर को आकर हम दफ्तर में

जन्म  दीन हो या हो प्रमोशन
या  छा  जाये कभी ख़ामोशी
हर पल साथ गुजरा है दफ्तर में
भूल जाते है घर को आकर हम दफ्तर में

न कोई  रंजीश  न  कोई  गिला
इक डाली  के है  फूल सभी
तबी  तो  गर्व  हम  कहते  है
बैंक  ऑफ़  बरोदा  है  हमारा  दफ्तर
भूल जाते है घर को आकर हम दफ्तर में