Thursday, July 19, 2007

खुशिया

धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे
दिल मे हो दर्द फिर भी खुशिया मनायेगे

खिलायेगे फूल जगह जगह
न खिले फूल तो काटो को सहेलायेगे
कागज़ के फूलो से खुश्ब्हू हम फहेलायेगे
धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे

खली हाथ आयेथ न जायेगे खली हाथ
दामन खुशियोका भर के ले जायेगे साथ
बातेगे खुशिया जनत मे , नरक को स्वर्ग बनायेगे
धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे

Tuesday, July 17, 2007

जीं भरके जीं ले

आज एक बार फिर सूरज को देखा
चांद को चांदनी रात मे जागते देखा
कल हम हो न हो पर
चांद सूरज हमेशा रहेंगे

आज एक बार सबसे मुस्क्राके बात कि
बिताये हुये पलो को साथ साथ याद किया
कल पुराने पल याद हो न हो
पर हम सदा याद रहेगे

कल जो होना हो वोह होगा
कल कि फिकर क्यो करे
आज तो जीं भरके जीं ले
कल जो होगा देखा जाएगा

Wednesday, July 11, 2007

शुक्रिया

कहेनी थी एक बात जो बद होतो मे रह् गई
नीद से जगाकर वोह खुद सो गए

कहेनो को तो किया था एक नजर का इशारा था
साथ दिया जो तुने उसका शुक्रिया था

ख़ुशी गामी मे निभाया है तुने साथ
न गिरने दिया मुज्को सदा थमा है हाथ

भर आई जब पलके तो पल्को को चूम लिया
गले लगाकर मेरा सारा दर्द ले लिया