Thursday, July 19, 2007

खुशिया

धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे
दिल मे हो दर्द फिर भी खुशिया मनायेगे

खिलायेगे फूल जगह जगह
न खिले फूल तो काटो को सहेलायेगे
कागज़ के फूलो से खुश्ब्हू हम फहेलायेगे
धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे

खली हाथ आयेथ न जायेगे खली हाथ
दामन खुशियोका भर के ले जायेगे साथ
बातेगे खुशिया जनत मे , नरक को स्वर्ग बनायेगे
धुप हो या छाव हम सदा मुस्क्रयेगे

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