Sunday, September 16, 2007

हर हाल मे जीना है - 1

हमे तो हर हाल मे जीना है
चाहे आस्मान जूक जाए
या जमीन फट जाए
हमे तो हर हाल मे जीना है

जीवन दुखों का सागर है
सागर मे गोता खाना है
सामने है किनारा
तर के पर उतरना है
हमे तो हर हाल मे जीना है

न डरे हम अंधेरो से
सवेरा तो होना है
बस एक रात कि दुरी है
सूरज को तो निकलना है
हमे तो हर हाल मे जीना है

न दोष दे किस्मत को
रास्ता हमने खुद चुना है
चीर के हर मुसीबत को
मंजिल अपनी पानी है
हमे तो हर हाल मे जीना है

1 comment:

शिवानी said...

manu ji ye aapki ek sshakt rachna hai ...jeevan mein josh bharti hai ...her haal mein jeene ka ek jazba ,ek zid ,ek honsla,ek lakshy,ek manzilis mein nazar aati hai ....saraltam shabdon mein ek ashawadi kavita hai ...badhai ....