चाहत है बस माँ के प्यार कि
जलती तपती दुप मे माँ के आचल कि
मस्ती भरे पलों मे माँ के गोद कि
सोचा था सेवा करूगा माँ कि
दौलत कि दौर मे भूल गया माँ को
आया जब होश तो न पाया माँ को
आया जब होश तो न पाया माँ को
काश एक भर वक़्त पीछे चले जाए
काश एक बार मे बचा बनू
एक बार फिर माँ के आचल से खेलु
अरज है इतनी प्रभु तुम से मेरी
पल भर लौटा दो माँ मेरी
माँ के गोद मे निकले आखरी सास मेरी
1 comment:
मुनव्वर राना साहब फ़रमाते हैं....
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है.
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