Sunday, October 14, 2007

माँ कि याद

चाहत है बस माँ के प्यार कि
जलती तपती दुप मे माँ के आचल कि
मस्ती भरे पलों मे माँ के गोद कि
सोचा था सेवा करूगा माँ कि
दौलत कि दौर मे भूल गया माँ को
आया जब होश तो न पाया माँ को
काश एक भर वक़्त पीछे चले जाए
काश एक बार मे बचा बनू
एक बार फिर माँ के आचल से खेलु
अरज है इतनी प्रभु तुम से मेरी
पल भर लौटा दो माँ मेरी
माँ के गोद मे निकले आखरी सास मेरी

1 comment:

sanjay patel said...

मुनव्वर राना साहब फ़रमाते हैं....
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है.