Sunday, November 23, 2008

कैसे भुला दू

छोड़ दुगा वोह गलिया
जहा साथ चले थे हम
छोड़ दुगा वोह हर शिह
जो याद तेरी दिलाती है
पर कहा छोडू इस दिल को
जिसमे याद तेरी रहेती है

कैसे भुला दु देखकर
मुझे तेरा मुस्कराना

kabhi अंचल में सिमटना
कभी पलके झुकाना
भुला दु यह हो नही सकता
अगर होता तो मै ही नही होता

आ जाए अगर यकीन मुझे
भुला पाओगे तुम भी मुझे
कसम है तुम्हारी चिर के
दिल निकालूँगा मेरा
जो लेता है हरदम नाम तेरा

राम नाम के साथ
निकलेगा जनाजा मेरा
जल जायेगी चिता जब मेरी
राख में मिलजायेगा जिस्म मेरा
उड़ उड़ के राख पुकारेगी नाम तेरा
कहेता है मनु
जनम जनम का नाता है हमारा
कभी लैला मजनू थे नाम हमारे
कभी हीर राझा थे नाम हमारे
हर जनम में बदला है रूप
पर दिल तो है एक है हमारे

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।

नीरज गोस्वामी said...

अच्छा लिखा है आपने...
नीरज