केशव रात को शादी ख़तम होते ही सेठ भगवानदास के पास आया और जाने की इजाज़त मागी, सेठ ने कहा रात रुक जाओ सुबह होते चले जाना, अभी तो शादी की और रसम बाकि है, देखो कोई गलती नही करना। अपना मुह छुपाना ज्यादा किसी से बाते नही करना और दुल्हन से तो बिल्कुल नही.
रात काफी हो चुकी थी इसलिए केशव थक गया था, रात के करीब २ बजे थे, उसे नीद आ गई और सो गया। थोडी देर बाद कमरे में उसकी दुल्हन आई, उसने केशव तो नीद से जगाया और बाते करने को कहा।
बात तो टालने के लिए केशव फिर से सो गया, तबी दुल्हन ने कहा आज की रात तो कैसे नीद आएगी,
कुया भूख लगी है कुछ खाने को लाऊ,रात काफी हो चुकी थी इसलिए केशव थक गया था, रात के करीब २ बजे थे, उसे नीद आ गई और सो गया। थोडी देर बाद कमरे में उसकी दुल्हन आई, उसने केशव तो नीद से जगाया और बाते करने को कहा।
बात तो टालने के लिए केशव फिर से सो गया, तबी दुल्हन ने कहा आज की रात तो कैसे नीद आएगी,
कुछ देर बाद दुल्हन वापस आई बोली खाना तो सब बंद कर दिया, कुछ सेवया पड़ी है, कहो तो लाऊ । केशव को भूख नही थी फिर भी दुल्हन को भगाने के लिए बोला अच्छा तो लाओ ।
रात ऐसे ही बीत गयी, सुबह के पाच बजे केसव धीरे से उठा और भगवानदास से जाने की इजाज़त मागी और वहा से चला गया।
सेठ भगवानदास ने जल्दी से अपने काणे लड़के को उठाया और उसे दुल्हन के पास भेज दिया।
जब सुबह दुल्हन उठी और अपने पास किसी और को देख कर घबरा गयी और पूछी तुम कौन हो, लड़के ने कहा मे तो तुम्हारा पति हूँ रात हमारी शादी हुई है,
दुल्हन आखे मीच कर उसे देखने लगी, और बोली नही तुम वो नही हो, मैंने माना ठीक से देखा नही पर वो तुम नही हो, सच बताओ तुम कौन हो। लड़के ने फिर से उसे विश्वास दिलाया की मै ही भगवानदास का इकलोता बेटा हूँ और रात हमारी शादी हुई है।
दुल्हन का दिल नही माना और अपने पिता के पास गयी और सारी बाते अपने पिता से कही।
सेठ द्वारकादास बहुत पहुचे हुए थे, गाव के मुखिया थे, सेठ को भी कुछ शक हुआ पर वो लड़की के पिता थे इसलिए बिना साबुत के कुछ .....
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