Saturday, August 23, 2008

नकली शादी


एक गाव, कृष्णपुर, बहुत छोटा सा गाव, करीबन ९० घर का एक गाव, गाव के लोग महेनत मजूरी कर के अपना गुजरान करते थे, उस गाव में ऐक लड़का केशव अपनी बुडी माँ के साथ रहता था, केशव बहुत सुंदर था, जंगल में लकडिया काट कर अपना घर चलता था, एक दिन वोह जंगल में लकडिया काट कर थक गया और, एक पेड़ के निचे सो गया। उसे बहुत गहेरी नीद आ गयी। शाम होने को थी, इतने में वहा से एक बारात निकल रही थी।

बैंड बाजों के साथ बारात जा रही थी, आगे घोडे पर दूल्हा था साथ में बाराती, पर दुल्हे का बाप, भगवानदास, उदास मन से जा रहा था, वो इसलिए की, उसका लड़का काना था, उसकी एक आख नही थी, जब, शादी की बात हुई थी तब, दुल्हे के पिता ने, उसका लड़का काना है, यह बात छुपाई थी, अब जब वो बारात लेकर जा रहे है तो सच तो सामने आना था, शायद बारात वापस ले कर जन पड़े। लड़के का पिता बड़ी उल्जन में था।

फिर जैसे ही उसकी नज़र, पेड़ के निचे सोये हुए लड़के पर पड़ी, तो उसके मन में एक अजीब सी मुस्कान आ गई, उसने बारात को वही पर रुकने को कहा, और भगवानदास उस लड़के के पास आया, उसे नीद से जगाकर, पूछा, बेटे, तबियत तो ठीक है, शाम होने को है और अभी तक नीद में हो, किया उल्जन है।

केशव आखे मीच के एकदम उठा, और बोले, नही बाबा थोड़ा थक गया था, इसलिए नीद आ गई, बस अब मे जा रहा हूँ,
केशव उठ कर लकडिया सर पर रख कर जाने लगा तो, भगवानदास ने उसे रोका, बेटे मेरा एक कम करोगे?
केशव बोला, बाबा, बहुत देर हो गई है, और लकडिया भी बेचनी है, माँ राह देख रही होगी, जब मे घर जऊँगा तब माँ खाना बनाएगी, और मे बला आपका क्या काम कर सकता हु ।

भगवानदास ने लड़के को कहा, तुम मेरा बहुत बड़ा कम कर सकते हो, मे तुम्हे बहुत पैसे दुगा, भगवानदास ने केशव को सब सच बता दिया, और अपने साथ चलने को कहा।

केशव, पैसे की बात सुनकर, राजी हुआ, पर माँ को ...
भगवानदास ने कहा, माँ की चिंता मत करो, मेरा आदमी, तुम्हारी घर संदेशा दे देगा की तुम दो दिन बाद लौटोगे, बस एक रात के लिए तुम दूल्हा बन जाओ और शादी होने के बाद, सवेरे तुम वापस लौट आना, मे तुम्हे सौ रूपए दूंगा और वहा से जो भी मिले वो भी तुम रख लेना।

जैसे तैसे कर के भगवानदास ने केशव तो मन लिया और उसे नई कपड़े दिए दूल्हा बना लिया, सर पर शहेरा, घोडे पर बिठाया, बारात आगे चली।

मीठापुर गाव में सेठ द्वारकादास ने बारातियों का खूब स्वागत किया गया, केशव तो बहुत खुश हुआ, अच्छा सा खाना, अच्छे कपड़े, और इतना मान सन्मान, उसने तो कभी सपने में भी नही सोचा था की ऐसा कभी नसीब में होगा, लेकिन दिल अन्दर से गबरा रहा था, क्या जो वो कर रहा है वो सही है या नही। पर उसने मन तो मन लिया, अपना क्या जाता है शादी होने के बाद, मे तो चला, बाकि सेठ जाने और उसका काम। सौ रूपए मिलेगे माँ खुश होगी और हमारी गरीबी दूर होगी।

शादी की रसम देर रात तक चली, सभी खुश थे, लेकिन केशव कुछ डर रहा था और जल्दी से शादी ख़तम हो और वो वहा से निकल चले, पुरोहित तो कुछ ज्यादा ही देर कर रहा था उसे दक्ष्ना तो मिलनी थी, शादी में लड़की ने केशव तो एक अंगूठी पहनाई, और एक सौ रुपे और भी मिले, रात के एक बजे शादी की रसम पुरी हुई।

केशव जल्दी से भगवानदास के पास आया और जाने की इजाज़त मागी....





1 comment:

Udan Tashtari said...

कहानी तो खत्म ही नहीं हुई-अभी जारी है क्या!! क्रमशः लिख देते तो ठीक रहता!!